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श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय के आठवें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण, अपने अवतार का हेतु बताते हुए कहते हैं कि, ”जब-जब देश में अधर्म का बोलबाला और धर्म अथवा सुव्यवस्था का नाश होने लगता है, तब-तब मैं अवतार लेता हूं और साधु सज्जनों की रक्षा तथा दुष्टों का विनाश कर, धर्म की स्थापना करता हूं।”
कुछ इसी प्रकार का वाक्य तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के बालकाण्ड में वर्णन किया है-
जब-जब होई धरम के हानी, बाढ़हिं असुर, अधम अभिमानी॥
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी, सीदहिं विप्र धेनु सुर धरनी॥
तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा, हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥

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